भारत अनेक जाति –जनजातियों] धर्म –पंथों तथा संस्कृति –संप्रदायों का भंडार हैं। देश की जनसंख्या का ukS प्रतिशत हिस्सा आदिवासी का है। झारखण्ड की बात djas तो यह 28 प्रतिशत तक है। मुड़ा] असुर] बिहोर] बेदरा] गोंडा] हो] गोरती] बिंझिया vkfn उन 32 आदिवासी समुदायों में प्रमुख हैSA जिनके नाम पर झारखण्ड को अलग राज्य का दर्जा मिला है। इन आदिवासी समुदायों की अपनी रहन-सहन] वेश-भूषा] आभूषण] संगीत] रुचियाँ] रीति–रिवाज भाषा बोली] कृषि] पशुपालन] खान–पान] सोच–विचार आज भी लोगों को इनके बारे में जानने bUgas समझने के लिए उत्सुकता पैदा करती है। असुर जनजाति के आदिवासी को राज्य के सबसे पुराने होने का दर्जा मिला है। आज भी ये समुदाय *मड़* के बने घरों में रहना पसंद करते हैं। 20 लाख वाली मुंडा जनजाति के आदिवासी बोल-चाल और खान –पान में सर्दी&मराण्डी जनजाति के सब से करीब मिलते हैं। वही म्चलिस जनजाति आज भी अपने दिनचर्या का गुजारा बाँस से टोकरी] पतों से प्लेट (दोना) बना और उसे बेचकर करते हैं। जल] जंगल] जमीन की ये आदिवासी पूजा करते हैं। और यही इनके दोहन एवं शोषण का मूल कारण बना हुआ है क्योंकि सरकार अब निजी उद्योगपति के ज़रीए अब सरकार की नज़र bUgha taxykas&tehuksa dh खनीज़ सम्पदा पर है।
झारखण्ड की सुदूर {ks=ksa से जब भी हम गुजरे तो जोहार झारखण्ड और भगवान बिरसा की जय के नारे हमेशा हमारे कानों को सुनने मिल जाते हैं। इस प्रदेश में देश की 40 प्रतिशत खनिज़ सम्पदा है vkSj ;kn j[kuk pkfg, fd जहाँ सालों से राज्य के 28 प्रतिशत आदिवासी रह रहे हैंA vjksi rks ;g Hkh gS fd सरकार विकास के नाम पर लगातार एक खास जनजाति को चयनित कर उनके घर से बेदखल कर रही है। बड़े–बड़े कारखाने] उद्योग के लिय ज़मीन उपलब्ध करना राज्य सरकार का मानो प्रथम लक्ष्य हो चुका है] फिर चाहे lSdM+ksa&हजारों आदिवासियों को उनके ही स्थान से उजाड़ना क्यो न पड़ेA हलाfक सरकार यह दावे करने में जरा भी देर नहीं करती की प्रभावितksa को काम और मकान पुनर्वास योजना के तहत दिया जाएगा। संभवता अगर करखानों में काम मिल भी जाए तो क्या ये व्यवहारिक है की एक समाज हजारों सालों से अपनी बाँस से टोकरी] पतों से प्लेट] खेती या पर्यावरण पर निर्भर होकर अपनी जीविका चलता हो] वो आचनक से कारखाने में वील्डिंग और xzSfYMax करने लगेa\ अपनी औद्योगिक नीति के तहत झारखण्ड की rRdkyhu बाबूलाल सरकार ने राँची से बहिरगोड तक चार लेन की 300 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने का निर्णय लिया था। tkfgj gS fd इस सड़क को बनाने में आदिवासियों की जमीन ली गयी। इस योजना को लागू करने पर अनुमानित तीन लाख लोग विस्थापित हु,A vkf[kj कहाँ गए ये लोग\ vc ;s क्या dj jgsa gksxas\ सरकार blls बेपरवाह jgh हैA इस असंतोष-आक्रोश ने अब लोगों के हाथ में बंदूकें थमा दी हksa rks blesa vk”p;Z D;k gS\ सोचने की बात rks है की अगर कोई आदिवासी जनजाति जल&जंगल&ज़मीन से बेदखाल gq, बिना ही विकास चाहती है तो सरकार उन्हें लगातार बदलने की कोशिश क्यों कर रही है\
भारतीय संविधान के धारा 342 के तहत भारत में 697 समुदाय के आदिवासी हैं। इनdh बेहतरी के लिए आदिवासी कल्याण मंत्रालय भी है। इसी तर्ज पर झारखण्ड में भी आदिवासी के विकास के लिए अलग विभाग हैं। राज्य की नौकरियों में आदिवासीयों के लिए आरक्षण की नीति अपनाई गयी है rkfd उनकी समाज में भागेदारी सुनिश्चित हो सके। पर जिस राज्य को आदिवासी राज्य होने है दर्जा मिला हो। जहां अभी तक सारे मुखमंत्री आदिवासी बने हैं। उसी राज्य में आदिवासियों के साथ सांस्कृतिक] सामाजिक] राजनीतिक] आर्थिक अन्याय देखने को मिल रहा है। संचार का सबसे बड़ा माध्यम शिक्षा आज भी इनसे कोशों दूर है । 71.4 प्रतिशत आदिवासी बच्चे प्राथमिक विद्यालय तक भी नहीं पहुँच पते है। 17.7 प्रतिशत माध्यमिक के बाद स्कूल को टाटा कह देते हैं। 10 क्लास तक ये आकड़ा 16.5 प्रतिशत तक रह जाता है। बात साफ है कि सरकार जो शिक्षा का अलक जागकर आदिवासियों को जागरूक सजक] आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश में है ये बात उन तक संप्रेषित नहीं हो पा रही है। केंद्र और राज्य सरकार की कई लाभकारी योजना, सरकारी इच्क्षा&शक्ति की कमी की वजह से दूर हैं। आज भी विज्ञापन होर्डिंग या सरकार dk प्रचार–प्रसार माध्यम आदिवासियों की भाषा u gksdj हिन्दी या इंग्लिश में है। जिसे उन्हें समझने में काफी परेशानी होती है या जो उनके लिए संप्रेषणीय नहीं है। भाषा का अजनबीपन हमेशा से सरकार और आदिवासियों ds chp कम्युनिकेशन गैप का काम कर रहा है। आज भी इन इलाकों में सड़क] बिजली] पानी की कोई सुविधा नहीं है। यानी मूलभूत सुविधाओं से कोशों दूर हैं। सरकारी संचार तंत्र- जनसम्पर्क विभाग] आदिवासी कल्याण विभाग] प्रिंट विभाग] फिल्म विभाग] सेंट्रल फील्ड प्रचार विभाग आदि आदिवासी के मामलों में मात्र खानापूर्ति के लिए काम कर रहे है। पंचायत] नगर] ज़िला] केंद्र के स्तर पर कई योजना, आदिवासियों को लाभ और उनकk स्तर को ऊपर लाने के लिए बनी है] जिनकks समझus से वे काफी दूर है और सरकारी संचार तंत्र इन मामलों में उदासीन बन बैठी है। सवाल है की अगर कोई समुदाय या जनजाति पर्यावरण से जल] जंगल] जमीन से जुड़े रहना चाहता है ftlls og सदियों से tqM+k Hkh रहा है तो सरकार उनके विकास की योजना उनके प्रकृति ds vuq#i में क्यो नहीं तैयार कर रही है\ निसंदेह विभिन्न आदिवासी समुदायों की वर्तमान के लिए शोषकों द्वारा विनिर्मित धूसर अतीत और जारी वर्तमान जिम्मेवार है] ysfdu ;fn lpewp ge pkgrsa gS fd mudk भविष्य सुनहरा हो rks इसके लिए आदिवसियों के साथ मिलकर सांस्कृतिक] सामाजिक] राजनीतिक] आर्थिक आदि कई मोर्चों पर लड़ाई लड़नी होगीA सरकार को सुदूर अतीत में विभिन्न आदिवासी समुदायों के जीवट और संघर्ष की सार्थकता को जहां पीछे मुड़कर याद करना ही चाहिए वही निकट भविष्य में उनकी सफलता चरम और निरंतर सुनियोजित विकास तक iहaqचाने का प्रयास करना चाहिए।